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कोटा

 हर साल दो लाख से ज्यादा स्टूडेंट कोटा आते है। जिसमे से 0.8% को ही ठीक ठाक कॉलेज मिल पाता है। बाकी 99.02% so called फैल हो जाते है। तो ये कहना कि सफ़लता सिर्फ हार्ड वर्क से मिलती है, ये अधूरी बात है। 0.8 second में तो दिल भी एक बार ही धड़कता है। कोटा आने वाले स्टूडेंट सबसे अलग हो जाते है अपने होमटाउन के दोस्तो से बचपन के यारो से, मेहनत के पीछे भागते भागते वो कब आगे निकल जाते है पता ही नहीं चलता। जो सफल नहीं हो पाते वो बीच में रह जाते है, लगता है आगे कॉलेज में ख़ुशी है या पीछे छूटे दोस्तो में... सच में वो कही के नहीं रहते है बस बीच में अटके हुए रहते है। कुछ सोचते है कोई बात नहीं मेहनत बेकार नहीं जाएगी अच्छा टीचर बन जाएंगे, कुछ YouTube, ख़ुद की कोचिंग तक कि कोशिश करते है लेकिन यहां भी IIT MBBS वालो का ही चलता है। जब तक सफल ना हो जाओ सफ़लता एक कहानी ही रहती है। अगर इस देश में कुछ भी हासिल करना है तो उसकी एक ही key है वो है patience जिस दिन इसे खो दिए उस दिन ही सच में हार जाओगे।  जब से 10th पास किया, कोटा आ गए NCERT, Module, race और मोटी मोटी notes को लिए दौड़ रहे है यहां से वहां हारने वा

गांधी भूत से भविष्य तक

मेरा बचपन से सपना था की खुद को गांधी जी के करीब महसूस करूं, सामने राजघाट में यहां जिस विचारक की स्मारक है। वो अपने आप में विश्वव्यापी भारत की पहचान है, जब एक अकेला प्लेट एशिया महाद्वीप से टकराया उस इतिहास से चल कर ढेरों सभ्यता, धर्म, ज्ञान, विचार बहुत सालों के सफ़र के बाद एक केंद्र में समाने की कोशिश की वो आत्मा का केंद्र गांधी थे। भारत क्या है, एक देश, एक बाजार, नहीं भारत एक ख़्वाब है,एक सपना, जहां हर कोई अपने रंग में खुश और खिलखिलाता दिखता है। ये गांधी का हिन्द स्वराज है। आज़ादी से 20 वर्ष पहले ही गांधी जी ने खुद को कांग्रेस से अलग कर के भारत के पुनः निर्माण में रचनात्मक कार्यों में वर्धा वास में रहकर जूट गए, गांधी के बनाए ढांचों को आज मोदी सरकार सारे रूप में अपना रही है। स्वदेशी, बेसिक शिक्षा, सब गांधी की नीतियां है। गांधी भारत का भूतकाल भी है, वर्तमान भी है, भविष्य भी है। गांधी व्यक्ति नहीं है ये एक प्रयोगशाला है, जिन्होंने ढेरों परिणाम दिए, बिना किसी नोबेल पुरस्कार के , गर्व से कह सकते है आप हमारे राष्ट्रपिता है।  गांधी भगवान नहीं थे उन्हें इस बात से गुस्सा भी आता था जब कोई उन्हें

सिनेमाई समाज

इस मुल्क में अब किसी भी बात की सार्थकता तब तक साबित नहीं होती , जब तक उसके ऊपर कोई फ़िल्म ना बने, हाल ही में नीरज चोपड़ा द्वारा ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने के बाद सोशल मीडिया पे चर्चा शुरु हो गई कि उनके बायोपिक में उनका किरदार कौन निभाएगा। कई फिल्मकारों को इसमें व्यवसाय भी दिख ही रहा होगा। व्यवसाय का अवसर तो शुरू से ही बाज़ार का हिस्सा रहा है, परन्तु आधुनिकता ने बाज़ार और समाज के बीच के अंतर को ही ख़त्म कर दिया। हम अपनी चेतना से चल तो रहे है, लेकिन उसे दिशा बाज़ार दे रहा है। अब प्रसिद्धि भी एक price tag के साथ आती है। अब हम नायकों को बस पर्दे पे ही देखना चाहते है। प्रेरणा हमे सिनेमा घरों में popcorn के साथ ही अच्छा लगता है। दो चार गाने और प्रेम प्रसंग के बिना मेहनत फीकी लगेगी ऐसा फिल्मकार मानते है। सच्चे नायक तो पहले कितबों में होते थे ना।  मुझे आज भी याद है बिहार बोर्ड के हिंदी पुस्तक में मनोज वाजपाई के बारे में पढ़ा था, जहां से पहली बार उन्हे जाना था, उसमे सकारात्मता थी। जिसने कलाकार शब्द को समझाया था, और समझ ने विचार को जन्म दिया, ना कि फैन बनने को विवश किया ताकि हम उनकी अंधभक्ति मे

"किताब दान" एक अभियान

 "ज्ञान बांटने से बढ़ता है. इसलिए पुस्तक को जितने लोग पढ़ेंगे उतना फायदा होगा."  ये पंक्ति पूर्णिया के जिला पदाधिकारी राहुल कुमार जी ने किताब" दान" अभियान को आरंभ करते वक्त कहा था।  क्या है इस अभियान का उद्देश्य? 1. ग्रामीण क्षेत्रों में पुस्तकालयों का निर्माण, जहां बैठकर लोगो को पढ़ने का मौका मिले और अगर चाहें या जरूरत हो तो किताब घर भी ले जा सके। 2. लोगों के घरों में बेकार पड़ी पुस्तकें जरूरतमंदों तक पहुंच सके  3.पूर्णिया जिले के सभी 230 पंचायतों में पुस्तकालय की शुरुआत जिसमे पांच सौ से अधिक किताबे होंगी  वर्तमान समय में इस अभियान ने अपने सभी उद्देश्यों को लगभग पूरा कर लिया है। जिले में इस अभियान का जबरदस्त असर दिख रहा है. अब तक हजारों लोगोंं ने डीएम साहब के अपील पर लाखों पुस्तकें दान में दी हैं। डीएम राहुल कुमार ने कहा है पांच सितंबर 2021 को सुबह 10 बजे से शाम के 5 बजे तक जिले के सभी शिक्षा केन्द्रों एवं प्रखंडों में बीआरसी भवन में किताब संग्रह अभियान चलाया जायगा जहां आके लोग पुस्तके दान कर सकते है।  उन्होंने साथ ही कहा कि अच्छे पुस्तकालयों को पुरस्कृत किया जाएगा

पूर्णिया से हवाई जहाज

दीनानाथ जी, बनेश्वर, हरिया, रामू और चमका दुवार पे बैठ के चाय पी रहे थे। तभी दूर से राजेंद्र उरांव का बेटा बबलू साइकिल से अखबार लाते दिख गया। बबलू को B.sc से स्नातक पास किए तीन साल बीत चुका है। और कॉलेज कि मेहरबानी से तीन साल का कोर्स पांच साल में पूरा हुआ है, अभी कॉम्पिटीशन की तैयारी कर रहा। पढ़ाई के लिए पिता जी ने कर्ज लिया था जिसके बदले जमीन गिरवी पड़ा है। अब घर की मजबूरियां देख कर बबलू अख़बार बेचने लगा है, जिससे घर वालो की मदद भी हो जाती है और खाली वक्त में पढ़ाई भी जारी रख सकता है। अख़बार देखते ही दीनानाथ जी अपने पोते को आवाज देते है पिंकू " पोता दौड़ के जाओ अख़बार ले आओ" पिंकू अख़बार लेने दौड़ता है।  तभी सब देखते है रामानंद जी अपनी पत्नी के साथ वापस आ रहे।  चमका बोलता है, अरे रामानंद काका काहे वापस आ रहे हैं सुबह 4 बजे ही स्टेशन गए थे। जोगबनी का ट्रेन पकड़ने के लिए क्या हुआ वापस आ रहे है?  बनेश्वर आवाज देते है... क्या हुआ रामानंद वापस काहे आ गए। ट्रेन छूट गई क्या?   नही भईया ट्रेन कहां छूटी हम तो चार बजे ही निकल गए थे ट्रेन पकड़ने के लिए लेकिन ट्रेन में इतनी भीड़ थी की ब

बारिश डुबोता है।

 कक्षा में हिंदी के अध्यापक कविता शुरू करते हुए कहते है....  कवि कहते है "बारिश ने शहर को भिंगो दिया"  अभिनव हाथ उठाते हुए सवाल करता है.... सर... बारिश भिंगोता नहीं डुबोता है! अध्यापक.. नहीं बेटा अभिनव बारिश भींगोता है।  अभिनव.. सर लेकिन हमारा पूर्णिया तो डूब जाता है। अध्यापक पूरी तरह से चुप हो जाते है। हिचकिचाते हुए बोलते है.. बैठ जाओ। बारिश एक बार फिर पूर्णिया वासियों को रुला रहा है।  लाइन बाजार, न्यू सिपाही टोला, मधुबनी, भट्ठा बाजार, बस पड़ाव, सुदीन चौक, ततमा टोली, नवरतन हाता, बाड़ी हाट, सुभाषनगर, माधो पाड़ा, माता स्थान चौक से मधुबनी चौक जाने वाली सड़क हो या डालर हाउस चौक से चुनापुर घाट जाने वाली सड़क सब डूब चुके है।  गाड़ी वाले हो या पैदल सब पानी में हेल रहे हैं। लोगों ने जो घर का कचरा बाहर फेंके थे तैर के घर में वापस आके पनाह मांग रहा।  सड़क जिसे तोड़ कर नाला बनवाया जा रहा था. अब उन्हीं नालों ने सड़क को अपने अधिकारक्षेत्र में ले लिया है।  बैंक मैनेजर साहब ने नई कार ली थी, सब्जी वाला ठेला सड़क पे पानी में लगाए मैनेजर साहब को सब्जी दे रहा था। साहब कार कि तरफ देखते हुए बोले कार